श्रीनगर
आगामी लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में सबसे दिलचस्प मुकाबला दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र में होगा। यह जम्मू-कश्मीर का ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां विभिन्न समुदायों के लोग रहते हैं और यह क्षेत्र जम्मू संभाग व कश्मीर दोनों में फैला हुआ है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में कश्मीर के दो जिले, अनंतनाग व कुलगाम और जम्मू संभाग के दो जिले राजौरी और पुंछ शामिल हैं। यह निर्वाचन क्षेत्र कश्मीर के धान के कटोरे के रूप में पहचाने जाने वाले अनंतनाग जिले के मैदानी इलाकों से लेकर पहलगाम, कुलगाम के पहाड़ी इलाकों और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब पुंछ व राजौरी तक फैला हुआ है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं का एक अलग वर्ग है। इसमें अनंतनाग और कुलगाम के कश्मीरी भाषी मुसलमान, पहलगाम के प्रभावशाली गुज्जरी भाषी मुसलमान, कोकेरनाग के ऊंचे इलाकों से लेकर डकसुम तक और कुलगाम जिले की तलहटी वाले इलाके शामिल हैं।
गुज्जर और पहाड़ी समुदायों की बहुत बड़ी संख्या वाले राजौरी और पुंछ के दो जिले इस निर्वाचन क्षेत्र में जीत और हार का फैसला करेंगे।
निर्वाचन क्षेत्र मे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), कांग्रेस और गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) के प्रभाव के बावजूद कोई भी एक ऐसा नेता है, जिस पर जीत का दांव लगाया जा सके।
इनमें से प्रत्येक दल की क्षेत्र में प्रभावशाली उपस्थिति है, लेकिन ऐसी उपस्थिति नहीं है, जिससे उनकी जीत तय मानी जा सके।
इसी पृष्ठभूमि में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने सबसे शक्तिशाली गुज्जर/बकरवाल नेता मियां अल्ताफ अहमद को मैदान में उतारने का फैसला किया है।
मियां अल्ताफ अहमद न केवल इस निर्वाचन क्षेत्र के चार जिलों में गुज्जर/बकरवाल समुदायों के राजनीतिक नेता हैं, बल्कि वह इस समुदाय के सबसे सम्मानित धार्मिक नेता भी हैं।
पिछली चार पीढ़ियों से, अपने परदादा से लेकर उनके पिता स्वर्गीय मियां बशीर अहमद तक, जिन्हें आदरपूर्वक 'बाबा साहब' कहा जाता है, मियां अल्ताफ अपने विरोधियों के खिलाफ एक ताकतवर विरासत से लैस हैं। हर साल उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले के वांगट गांव में उनकी पैतृक मजार पर आयोजित वार्षिक उर्स पर, पुंछ और राजौरी जिलों के कोने-कोने और केंद्र शासित प्रदेश के अन्य हिस्सों से हजारों गुज्जर/बकरवाल मत्था टेकने के लिए जुटते हैं।
वांगट मजार पर चढ़ाए जाने वाले 'नजराना' (भक्ति प्रसाद) में नकदी, मवेशी, भेड़ और बकरियां शामिल हैं, जिनकी कीमत हर साल करोड़ों रुपये में होती है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस जल्द ही इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए मियां अल्ताफ की उम्मीदवारी की घोषणा कर सकती है।
मियां अल्ताफ के करीबी सूत्रों ने बताया कि उनकी सहमति पहले ही ली जा चुकी है और डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला दोनों द्वारा उनसे अनुरोध किए जाने के बाद, मियां के पास सहमति के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
नेकां द्वारा मियां अल्ताफ अहमद को मैदान में उतारने के साथ, भाजपा अब उनके मुकाबले के उम्मीदवार पर गंभीरता से विचार कर रही है। पुंछ और राजौरी जिलों में भाजपा को एक बड़ा फायदा पहाड़ी समुदाय के लिए एसटी दर्जे की हालिया घोषणा से हुआ है।
आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों जिलों में पहाड़ी समुदाय के तीन लाख से ज्यादा वोटर हैं। पहाड़ी लोग भाजपा को वोट देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, क्योंकि उनकी 70 साल पुरानी मांग केंद्र की भाजपा सरकार ने पूरी की है।
पुंछ और राजौरी में रहने वाले गुज्जर और हिंदूू भी भाजपा के समर्थक हैं, जिनका वोट भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में जाएगा।
इस तथ्य को देखते हुए कि एनसी और पीडीपी के बीच किसी भी तरह का गठजोड़ अब नहीं हो रहा, अनंतनाग और कुलगाम में कश्मीरी भाषी मुस्लिम मतदाता बंट जाएंगे। पीडीपी संभवतः एनसी के खिलाफ एक ताकतवर उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है।
एनसी ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती से पूछे बिना ही पीएजीडी को छोड़ दिया। उनके करीबी सूत्र बताते हैं कि महबूबा मुफ्ती एनसी की तारीफ को चुपचाप स्वीकार नहीं करेंगी।
गुलाम नबी आजाद की इस निर्वाचन क्षेत्र में कोई मजबूत उपस्थिति नहीं है, लेकिन कांग्रेस के साथ मिलकर वह पीडीपी और एनसी का खेल बिगाड़ सकते हैं।
इन हालातों को देखते हुए, अब बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा इस क्षेत्र में किसे मैदान में उतारती है।
'बैटल रॉयल' निश्चित रूप से नेकां के मियां अल्ताफ अहमद और भाजपा के बीच होने जा रही है।
गुज्जर/बकरवाल के वरिष्ठ नेता के पक्ष में भारी बहुमत होने के कारण, भाजपा को मियां द्वारा प्रस्तुत राजनीति और धर्म के मिश्रण का मुकाबला करने के लिए किसी दिग्गज को मैदान में उतारना होगा।
संक्षेप में कहें तो जम्मू-कश्मीर में सबसे दिलचस्प चुनावी लड़ाई दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र में होने जा रही है।
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