आलीराजपुर
आदिवासी अंचल के झाबुआ और आलीराजपुर जिले में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक उत्सव भगोरिया की इन दिनों धूम है। होली के सात दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल पूरी तरह उत्सव में डूबा रहता है। होली के पहले भगोरिया के सात दिन आदिवासी समाजजन खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। भगोरिया या भोंगर्या हाट में आदिवासी समाजजन ढोल-मांदल की थाप और बांसुरी की तान पर जमकर नृत्य करते हैं। पारपंरिक वेशभूषा में जब टोलियां नृत्य करते हुए निकलती हैं तो हर कोई झूमने लगता है। देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर जरूर लौट आता है। भगोरिया की तैयारियां आदिवासी पहले से ही शुरू कर देते हैं। भगोरिया हाट के लिए जमकर खरीदारी की जाती है। इसीलिए भगोरिया से एक सप्ताह पहले लगने वाले हाट को त्योहारिया हाट कहा जाता है। त्योहारिया यानि त्योहार की तैयारी।
व्यापारियों को बेसब्री से रहता है उत्सव का इंतजार
त्योहारिया हाट में आभूषण, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, जूते-चप्पल, किराना सामग्री आदि की जमकर खरीदारी की जाती है। लिहाजा व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है। भगोरिया को लेकर बाजार खरीदारी से चहक उठता है।
दो भील राजाओं ने राजधानी भगोर में की थी मेले की शुरुआत
ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आसपास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया हाट कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में दूसरी मान्यताएं भी हैं। यह भी कहा जाता है कि होली के पहले लगने वाले हाट में जमकर गुलाल उड़ाया जाता था, जिससे इन्हें गुलालिया हाट कहा जाने लगा। बाद में बदलकर यह भगोरिया हाट हो गया।
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