नई दिल्ली
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने देश में नई परिपाटी की शुरूआत की है. वो यह कि भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार सीएम भी सरकार चला सकता है. केजरीवाल ने जैसा कहा, वैसा करके दिखा भी दिया है. अभी तक ईडी की न्यायिक हिरासत से उन्होंने कथित रूप से दो आदेश पारित किए हैं. दिल्ली की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने जहां इसका विरोध किया है वहीं ईडी ने भी जांच शुरू की है कि बिना कागज-कलम और कंप्यूटर के किस तरह अरविंद केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को आदेश भेज रहे हैं. फिलहाल अरविंद केजरीवाल कब तक जेल के अंदर से दिल्ली की सरकार चला पाते हैं, ये तो समय बताएगा पर उन्होंने देश की जनता के सामने कुछ सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं, जिसका जवाब वे ही दे सकते हैं.
1-यदि वे सीएम बने रह सकते हैं, तो मनीष सिसौदिया और सत्येंद्र जैन से इस्तीफा क्यों लिया?
अरविंद केजरीवाल को ऐसा लगता है कि वो जेल के अंदर से ही सरकार चला सकते हैं तो फिर यह योजना उन्होंने अपनी टीम के अन्य मंत्रिमंडलीय साथियों के जेल जाने पर क्यों नहीं शुरू की. इससे बेहतर क्या हो सकता है कि जेल के अंदर से उन्हें अपने साथियों के साथ मीटिंग वगैरह की सुविधा भी मिल जाती. अरविंद केजरीवाल को जेल में पहुंचे साथियों की फिर से मंत्रीमंडल में एंट्री करानी चाहिए. अगर शपथ ग्रहण में दिक्कत हो तो कोर्ट का सहारा लेना चाहिए. कोर्ट जमानत भले ही न दे इतनी रिक्वेस्ट तो स्वीकार कर ही सकता है कि उनके शपथ ग्रहण की व्यवस्था करवा दे.
2-लालू, हेमंत सोरेन जब अपनी कुर्सी ट्रांसफर कर सकते हैं, तो केजरीवाल को किस बात का डर?
अरविंद केजरीवाल के सामने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का उदाहरण सामने है. केजरीवाल लालू यादव का राबड़ी मॉडल या हेमंत सोरेन का मांझी मॉडल अपना सकते थे. पर शायद अभी भी वो गुणा-गणित लगा रहे हैं कि दोनों में से कौन सा मॉडल उनके लिए मुफीद होगा. क्योंकि अभी तक ऐसा नहीं लग रहा है कि वो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद रिजाइन देने वाले हैं. इसके साथ ही यह भी तय है कि जेल के अंदर से दिल्ली सरकार को चलाना ज्यादा दिन संभव भी नहीं है. मंगलवार को जिस तरह से बीआरएस नेता के कविता को इसी शराब घोटाले में कोर्ट ने 14 दिन की न्यायायिक हिरासत में भेजा है उससे यही लगता है कि केजरीवाल को भी कोर्ट से राहत नहीं मिलने वाली है.आज नहीं तो कल लालू और हेमंत सोरेन की तरह से केजरीवाल को फैसला लेना ही होगा.
3-पत्नी सुनीता को सीएम बनाने से क्या डर रहे हैं केजरीवाल?
पत्नी सुनीता केजरीवाल को सीएम बनाने से डरने के पीछे क्या कारण हो सकता है? क्या महारानी सीरीज के हुमा कुरैशी के किरदार से डर रहे हैं? या उत्तर प्रदेश मे मंत्री दया शंकर की पत्नी स्वाति सिंह की कहानी से. दरअसल ओटीटी पर मौजूद महारानी की कहानी बिहार की राजनीति में एक महिला मुख्यमंत्री की कहानी है. भीमा भारती बिहार के मुख्यमंत्री होते हैं . किसी कारणवश उनको रिजाइन करना पड़ता है और वो अपनी पत्नी रानी भारती को मुख्यमंत्री बना देते हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद वह गूंगी गुड़िया बिहार के शुद्धीकरण में लग जाती है और अपने पति के आदेश मानने से इनकार कर देती है. बाद में भीमा भारती बहुत कोशिश करके भी अपनी पत्नी को कुर्सी से उतार नहीं पाते हैं.
उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह की भी यही कहानी है. बीजेपी नेता दयाशंकर ने मायावती के लिए कभी अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. मामला बढ़ने के बाद अपने पति के बचाव में उतरी स्वाती सिंह इस तरह हाईलाइट होती हैं कि पति की जगह पर पार्टी उन्हें विधायक का टिकट देती है और फिर जीतने पर मंत्री भी बनती हैं. उसके बाद स्वाति भी अपने पति के आदेशों को मानने से इनकार कर देती है और अपनी स्वतंत्र इमेज बनाती हैं. क्या केजरीवाल को ये दोनों कहांनियां परेशान कर रही हैं.क्योंकि सुनीता केजरीवाल भी आईआरएस रही हैं. प्रशानिक सेवा के दौरान उनकी योग्यता पर कभी उंगली नहीं उठी है. इसलिए उनकी काबिलियत पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता. हो सकता है कि जब उन्हें सीएम का पद मिल जाए तो वो केजरीवाल से बेहतर काम करें. क्योंकि केजरीवाल अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कभी एक्टिविस्ट से ऊपर नहीं उठ पाए. हो सकता है पुरुष का इगो केजरीवाल के आड़े आ रहा हो जिसके चलते वो सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने से डर रहे हों.
4-आप के बाकी नेता क्या भरोसे के काबिल नहीं हैं?
अरविंद केजरीवाल के रिजाइन न करने के पीछे ये संदेश भी जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के अपने सहोगियों के प्रति उन्हें भरोसा नहीं हो रहा है. कहीं न कहीं भरोसे का ही कारण था कि पार्टी से प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव आदि जैसे कद्दावर नेता धीरे-धीरे पार्टी छोड़कर जाते रहे. तो क्या अरविंद केजरीवाल को अब भी यही चिंता खाए जा रहा है कि अगर वो आतिशी, सौरभ भारद्वाज या गोपाल राय आदि में से किसी को मुख्यमंत्री बना देते हैं तो ये लोग भविष्य में उन्हें किनारे लगा देंगे. केजरीवाल अगर ऐसा सोचते हैं तो यह सही भी है . राजनीति में कोई सगा नहीं होता है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी यहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ही सीएम बने पर परिवार में कई दावेदार होने के चलते उन्होने चंपई सोरेन का नाम चुना. दरअसल भारतीय राजनीति में एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ है जब भरोसे का लोगों ने कत्ल किया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उदाहरण सामने है. जब उन्होंने जीतन राम मांझी को सबसे कमजोर समझकर सीएम बनाया था. उनकी सोच यही थी कम से कम ये तो उनकी हर बातों को मानेंगे ही और जब कहूंगा सीएम पद छोड़ भी देंगे. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. सीएम पद संभालते ही मांझी पलट गए. यहां तक की उन्हें कुर्सी से हटाने में नीतीश कुमार की काफी मशक्कत करनी पड़ी.
5-बिना पोर्टफोलियो के सीएम बने रहने की चाल क्या उलटी पड़ गई?
देश का इतिहास रहा है कि मुख्यमंत्री कई खास विभाग अपने से ही अटैच रखते हैं. इसके पीछे यही कारण रहा है कि सरकार में उनका महत्व बना रहे. पर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने सभी महत्वपूर्ण विभाग अपने खास सहयोगियों को देते रहे हैं. जेल जाने के पहले तक सभी खास विभाग मनीष सिसौदिया के पास होते थे. बाद भी आतिशी के पास चले गए. राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि ऐसा कानूनी विवादों में फंसने से बचने के लिए अरविंद केजरीवाल ने किया था. पर जैसा सोचा वैसा हुआ नहीं. शराब घोटाले में खुद को कानून की जाल से वो बचा नहीं सके.
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