नईदिल्ली
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) को वापस लेने पर विचार करेगी. शाह ने एक कश्मीरी समाचार चैनल के साथ बात करते हुए कहा कि सरकार की योजना केंद्र शासित प्रदेश में सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था को अकेले जम्मू-कश्मीर पुलिस पर छोड़ने की है.
गृह मंत्री ने कहा, "हमारी योजना सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था को केवल जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवाले करने की है. पहले, जम्मू-कश्मीर पुलिस पर भरोसा नहीं किया जाता था, लेकिन आज वे ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे हैं." विवादित AFSPA को लेकर पूछे गए सवाल पर गृह मंत्री ने कहा, 'हम AFSPA हटाने के बारे में भी सोचेंगे. हम कश्मीर के युवाओं से बातचीत करेंगे, न कि उन संगठनों से जिनकी जड़ें पाकिस्तान में हैं.'
पीओके को वापस पाना हर भारतीय का लक्ष्य
क शाह ने कहा कि बीजेपी और पूरी संसद का मानना है कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है. उन्होंने कहा, 'मुस्लिम भाई भी भारतीय हैं और पीओके में रहने वाले हिंदू भाई भी भारतीय हैं और पाकिस्तान ने जो जमीन अवैध रूप से कब्जा कर ली है वह भी भारत की है. इसे वापस पाना हर भारतीय, हर कश्मीरी का लक्ष्य है. आज पाकिस्तान भूख और गरीबी की मार से घिरा हुआ है और वहां के लोग भी कश्मीर को स्वर्ग के रूप में देखते हैं. मैं सभी को बताना चाहता हूं कि अगर कोई कश्मीर को बचा सकता है, तो वह प्रधान मंत्री मोदी हैं.'
अनुसूचित जाति (एससी),अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को लेकर पूछे गए सवाल पर शाह ने कहा कि पहली बार, जम्मू-कश्मीर के ओबीसी को मोदी सरकार ने आरक्षण दिया है और महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया है.उन्होंने कहा, ‘पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण दिया गया. हमने एससी और एसटी के लिए जगह बनाई है. गुज्जर और बकरवालों की हिस्सेदारी कम किए बिना, पहाड़ियों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित लोगों को समायोजित करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं.’
बताया आगे का प्लान
जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने अफस्पा हटाने की मांग की है. शाह ने कहा कि सितंबर से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे. उन्होंने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को स्थापित करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वादा है और इसे पूरा किया जाएगा. हालांकि, यह लोकतंत्र केवल तीन परिवारों तक सीमित नहीं रहेगा और लोगों का लोकतंत्र होगा.' उन्होंने कहा कि केंद्र यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि ये लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे.
यहां से हटा लिया है AFSPA
कश्मीर में इसे हटाने को लेकर लंबे समय से मांग चली आ रही है. अगर सरकार इसे हटाने की दिशा में कोई कदम उठाती है तो यह बहुत बड़ा फैसला होगा.
मोदी सरकार द्वारा सुरक्षा स्थिति में सुधार के कारण AFSPA के अंतर्गत अशांत क्षेत्र अधिसूचना को त्रिपुरा से 2015 में और मेघालय से 2018 में पूरी तरह से हटा लिया गया था. संपूर्ण असम में वर्ष 1990 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू था. 01 अप्रैल, 2022 से असम के 9 जिलों तथा एक जिले के एक सब-डिविजन को छोड़कर शेष पूरे असम राज्य से AFSPA के अन्तर्गत अशांत क्षेत्रों को हटा लिया गया था. 01अप्रैल 2023 से अशांत क्षेत्रों में ओर कमी करते हुए इसे मात्र 8 जिलों तक सीमित कर दिया था.
कब बना कानून
AFSPA एक ऐसा कानून है, जिसे 'अशांत इलाकों' यानी 'डिस्टर्ब एरिया' में लागू किया जाता है. अफस्पा अशांत क्षेत्रों में सक्रिय सशस्त्र बलों के कर्मियों को ‘‘लोक व्यवस्था कायम’’ रखने के लिए आवश्यकता होने पर तलाशी लेने, गिरफ्तार करने और गोली चलाने की व्यापक शक्तियां देता है. 11 सितंबर 1958 को ये कानून बना था. इसे सबसे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू किया गया था. 90 के दशक में जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ा तो यहां भी ये कानून लागू कर दिया गया.
AFSPA से होता क्या है?
AFSPA से सुरक्षाबलों को असीमित अधिकार मिल जाते हैं. सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं, बल प्रयोग कर सकते हैं या फिर गोली तक मार सकते हैं.हालांकि, बल प्रयोग करने और गोली चलाने से पहले चेतावनी देनी जरूरी होती है. सुरक्षाबल चाहें तो किसी को भी रोककर उसकी तलाशी ले सकते हैं.इस कानून के तहत, सुरक्षाबलों को किसी के भी घर या परिसर की तलाशी लेने का अधिकार मिल जाता है. अगर सुरक्षाबलों को लगता है कि उग्रवादी या उपद्रवी किसी घर या बिल्डिंग में छिपे हैं, तो वो उसे ध्वस्त भी कर सकते हैं.इस कानून में सबसे बड़ी बात ये है कि जब तक केंद्र सरकार मंजूरी न दे, तब तक सुरक्षाबलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती.
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