नई दिल्ली
लोकसभा में मंगलवार को 'एक देश, एक चुनाव' संविधान संशोधन विधेयक पेश कर दिया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को सदन में पेश किया। विपक्ष ने विधेयक का जमकर विरोध किया। कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने मंगलवार को लोकसभा में एक साथ चुनाव कराने से संबंधित विधेयक का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है तथा देश को ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाने वाला कदम है।
उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को पुर:स्थापित करने के लिए संसद के निचले सदन में रखा। विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान के बुनियादी पहलू हैं जिसमें संशोधन इस सदन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक बुनियादी ढांचे पर हमला है और इस सदन के विधायी अधिकार क्षेत्र से परे है। न्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है और ऐसे में केंद्रीकरण का यह प्रयास पूरी तरह संविधान विरोधी है। उन्होंने आग्रह किया कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए।
क्या बोली समाजवादी पार्टी
विधेयक का विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने कहा कि दो दिन पहले सत्तापक्ष ने संविधान पर चर्चा के दौरान बड़ी-बड़ी कसमें खाईं और अब दो ही दिन के अंदर संविधान के मूल ढांचे और संघीय ढांचे को खत्म करने के लिए यह विधेयक लाए हैं। उन्होंने दावा किया, ‘यह संविधान की मूल भावना को खत्म करने का प्रयास है और तानाशाही की तरफ ले जाने वाला कदम है।’ समाजवादी पार्टी सदस्य ने कटाक्ष करते हुए कहा कि जो लोग दो राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ नहीं करा पाते हैं, वे पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात कर रहे हैं। यादव ने कहा कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए।
टीएमसी ने बताया अल्ट्रा वायरस
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और यह ‘अल्टा वायरस’ है। उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया जा सकता। बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभाएं केंद्र और संसद के अधीनस्थ नहीं होती हैं, यह बात समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संसद को कानून बनाने का अधिकार है, उसी तरह विधानसभाओं को भी कानून बनाने का अधिकार है। तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह राज्य विधानसभाओं की स्वायत्ता छीनने का प्रयास है। उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहेगा, एक दिन सत्ता बदल जाएगी। बनर्जी ने कहा, ‘‘यह चुनावी सुधार नहीं है, एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए लाया गया है।’’
डीएमके ने विधेयक को अनुमति देने पर उठाए सवाल
डीएमके नेता टीआर बालू ने सवाल किया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी? इस पर बिरला ने कहा, ‘मैं अनुमति नहीं देता, सदन अनुमति देता है।’ बालू ने कहा, ‘मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जाए और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए।’ आईयूएमएल के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले का प्रयास है।
शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग के कामकाज की भी जांच-परख होनी चाहिए और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जो हुआ, उसे देखते हुए यह जरूरी हो गया है। लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि ये दोनों विधेयक संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर आक्रमण हैं। उनका कहना था कि निर्वाचन आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निर्धारित हैं और अब उसे बेतहाशा ताकत दी जा रही है। गोगोई ने कहा कि इस विधेयक से निर्वाचन आयोग को असंवैधानिक ताकत मिलेगी।
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