गाजियाबाद
कुछ मौकों को छोड़ दें तो गाजियाबाद के वोटर देश के मूड के साथ मतदान करते रहे हैं। हापुड़ गाजियाबाद लोकसभा के लिए अब तक हुए कुल 16 मतदानों में से 12 बार यहां के मतदाताओं ने केंद्र में सरकार बनाने वाली पार्टी के ही प्रत्याशी को विजयी बनाया है। चार बार देश के बहुमत से जुदा राय रखने की वजह खास रहीं।
पहले हापुड़-गाजियाबाद सीट जहां कांग्रेस का गढ़ होती थी, वहीं अब यह भाजपा का अभेद किला बनती जा रही है। इस सीट के शुरुआती चार चुनावों में तीन कांग्रेस ने जीते। फिर साल 1984 और 2004 में कांग्रेस यहां से विजयी हुई। जबकि भाजपा को यहां से अपना खाता खोलने के लिए साल 1991 तक इंतजार करना पड़ा। लेकिन, इसके बाद मात्र एक बार ही भाजपा ने यह सीट गंवाई है। परिसीमन के बाद से तो भाजपा लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है। बसपा और सपा को अभी तक खाता खुलने का इंतजार है।
शुरू से बात करें तो साल 1957 में हापुड़ लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। गाजियाबाद के मतदाता साल 2004 तक हापुड़ लोकसभा सीट के लिए ही मतदान करते रहे हैं। इससे पहले साल 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव में गाजियाबाद के लोगों ने मेरठ लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवार को वोट किया था। साल 1957 व 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी को गाजियाबाद के लोगों ने जिताया। केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी। साल 1971 में केंद्र में तो कांग्रेस की सरकार बनी मगर हापुड़ लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश वीर शास्त्री संसद पहुंचे थे। प्रकाश वीर शास्त्री की व्यक्तिगत छवि कांग्रेस व दूसरे दलों पर भारी पड़ी थी।
साल 1977 में देश में जनता पार्टी की हवा थी तो हापुड़ लोकसभा से भी जनता पार्टी के उम्मीदवार कुंवर महमूद अली जीते। हालांकि, अगले आम चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की मगर गाजियाबाद के लोगों ने जनता पार्टी (सेक्युलर) के प्रत्याशी अनवर अहमद पर भरोसा जताया। साल 1984 में कांग्रेस की आंधी थी। गाजियाबाद से भी कांग्रेस कैंडीडेट ही विजयी हुई। साल 1989 में जनतादल के केसी त्यागी यहां से जीते। केंद्र भी इस दल ने ही सरकार बनाई।
नब्बे के दशक में भाजपा की किस्मत चमकी
साल 1991 में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस ने पांच साल सरकार चलाई। राम मंदिर आंदोलन के बाद पहली बार गाजियाबाद में भाजपा का खाता खुला। फिर लगातार चार बार भाजपा प्रत्याशी डॉ. रमेश चंद तोमर यहां से लगातार जीते। साल 2004 में कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता में वापसी की तो हापुड़ सीट पर भी कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेंद्र प्रकाश गोयल विजयी हुए।
लोनी और धौलाना के मतदाता गाजियाबाद में जुड़े
साल 2008 में परिसीमन के बाद हापुड़ सीट गाजियाबाद लोकसभा के नाम से जानी जाने लगी। दरअसल हापुड़ लोकसभा क्षेत्र में हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर, मोदीनगर, मुरादनगर और गाजियाबाद विधानसभा आती थीं। परिसीमन के बाद गाजियाबाद लोकसभा में गाजियाबाद, साहिबाबाद, मुरादनगर, लोनी और धौलाना विधानसभा के मतदाता मतदान करते हैं।
परिसीमन के बाद भी नहीं बदले हालात
साल 2009 में कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुई मगर यहां परिसीमन के बाद गाजियाबाद लोकसभा से भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह चुनाव लड़े। शायद यही कारण रहा कि सुरेंद्र प्रकाश अपनी सीट नहीं बचा पाए। फिर वीके सिंह लगातार दो चुनाव जीते और केंद्र भी भाजपा की सरकार बनी।
कृष्ण चंद्र शर्मा भी गाजियाबाद में नहीं जन्मे थे
राजनाथ सिंह और वीके सिंह के गाजियाबाद से चुनाव लड़ने के साथ ही विपक्षी दल स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन गाजियाबाद हापुड़ लोकसभा के पहले सांसद कृष्ण चंद्र शर्मा भी गाजियाबाद के मूल निवासी नहीं थे। उनका जन्म सहारनपुर में हुआ था। उनके सामाजिक व राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिनों की कर्मस्थली भी मेरठ रही। पंडित जवाहर लाल नेहरू के विश्वासपात्रों में शामिल रहे कृष्ण चंद्र शर्मा को कांग्रेस ने पहली बार गाजियाबाद हापुड़ लोकसभा चुनाव क्षेत्र से मैदान में उतारा था।
केवल एक बार ही गाजियाबाद से महिला संसद पहुंची
गाजियाबाद हापुड़ लोकसभा के लिए गाजियाबाद के लोगों ने 16 बार मतदान किया है। 15 बार पुरुष सांसदों ने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। केवल एक बार ही महिला सांसद ने गाजियाबाद के लोगों की आवाज संसद में उठाई है। साल 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार कमला चौधरी निर्दल प्रत्याशी नसीम मोहम्मद को हराकर सांसद बनी थीं। तब से कई राजनीतिक दलों ने महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है मगर कोई जीत नहीं सकी।
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