आजकल न्यूरोपैथी होने की सबसे बड़ी वजह डायबिटीज है। डायबिटीज में जब शुगर का स्तर कई महीनों तक HbA1c के सामान्य लेवल (यह शरीर में 3 महीनों के शुगर का औसत स्तर बताता है) 5.7 से बढ़ा हुआ हो। जितने लंबे समय तक यह बढ़ा रहेगा, उतनी ही ज्यादा न्यूरोपैथी होने की आशंका रहेगी। इसलिए इसे काबू में रखना जरूरी है। वहीं शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स को कम रखना होगा।
क्या खाएं और क्या नहीं?
शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स ज्यादा बनने लग जाएं तो न्यूरोपैथी की समस्या हो जाती है। इसके लिए बाहर का खाना, जंक फूड (नूडल्स, बर्गर आदि) को कम से कम करना होगा। साथ ही, डाइट में ऐसी चीजों को शामिल करना होगा जिनमें भरपूर मात्रा में ऐंटिऑक्सिडेंट मौजूद हों। मसलन: मौसमी हरी साग-सब्जियां, सलाद, फल आदि। इनके अलावा ड्राई फ्रूट्स भी खाएं। हर दिन 2 अखरोट, 5 बादाम, 5 मुनक्का खाने से फायदा होगा।
फ्री रेडिकल्स और एंटिऑक्सिडेंट का चक्कर
जब-जब आप खाना खाएंगे या जब-जब बीमार पड़ेंगे या जब-जब शरीर में अंदरूनी सूजन होगी तो शरीर में ऐसे अणु (molecule) भी बनेंगे जो बहुत ज्यादा अस्थिर और हानिकारक होंगे। इसकी अस्थिरता ही हमारे शरीर के लिए हानिकारक है। समझने के लिए, हम जब भी कुछ खाते हैं तो भोजन पचने और ऊर्जा पैदा होने के दौरान शरीर में दो तरह के अणु बनते हैं। एक अणु जो बहुत अस्थिर और ऐक्टिव (फ्री रेडिकल्स) होता है और दूसरा अणु कुछ सक्रिय लेकिन स्थिर (ऐंटिऑक्सिडेंट्स) रहता है।
इस स्थिर अणु का काम है अस्थिर अणु से जुड़कर उसे स्थिरता प्रदान करना। हां, बीमार पड़ना यह हमारे हाथों में नहीं होता और ना ही भोजन करना तो बंद नहीं कर सकते। लेकिन भोजन के दौरान यह तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं कि ऐसा खाना खाएं जिससे फ्री रेडिकल्स कम से कम बनें और ऐंटिऑक्सिडेंट्स ज्यादा से ज्यादा।
खांसी-जुकाम का असली कारण
शरीर में ज्यादा अस्थिर अणु बनने से ही खांसी, जुकाम जैसी गड़बड़ियां सामने आती हैं। सीधे कहें तो शरीर में केमिकल लोचे का असल कारण ये अस्थिर अणु ही हैं। ऐसे में हम खानपान न बदलें तो अस्थिर अणु यानी फ्री रेडिकल्स से ऐंटिऑक्सिडेंट्स हारने लगते हैं और शरीर बीमार हो जाता है। वहीं स्थिर अणु हमारे शरीर के डिफेंस सिस्टम का ही हिस्सा हैं। इनका काम होता है अस्थिर अणु की क्रियाओं पर रोक लगाना और उनकी संख्याओं को कम करना। स्थिर अणु हरी सब्जियों और फलों में ज्यादा मात्रा में मिलते हैं। हम ताजे फल, सब्जी खाएं जो कम से कम केमिकल वाले हों।
इन पर भी दें ध्यान- बीमारी का इलाज करवाएं
अगर किसी को कोई गंभीर बीमारी या लिवर, किडनी, कैंसर आदि या शुगर जैसी लाइफस्टाइल बीमारी भी हो तो इन बीमारियों का सही तरीके से इलाज कराना होगा। वहीं चोट लगने या फ्रैक्चर होने पर भी सही इलाज कराना चाहिए। सही वक्त पर इलाज सही होने पर अमूमन न्यूरोपैथी की आशंका कम होती है।
जरूरी है फिजिकल एक्टिविटी
हर दिन 1 घंटे की फिजिकल ऐक्टिविटी जरूरी है। इसमें ब्रिस्क वॉक, योगासन, एक्सरसाइज सब शामिल हों। इनसे शरीर में ब्लड फ्लो सही रहता है। मांसपेशियों को मजबूत करने वाली एक्सरसाइज़ (वेटलिफ्टिंग, पुशअप्स आदि) करें।
विटामिन्स की जांच कराएं
अगर शुगर है तो 6 महीने में एक बार और अगर सामान्य हों तो सालभर में 1 बार विटामिन B-12 और विटामिन-D की जांच करानी चाहिए। अगर रिजल्ट में कोई लेवल कम हो तो उसे डाइट और सप्लिमेंट्स की मदद से दुरुस्त करना चाहिए।
छोटे लक्षणों पर दें ध्यान
अगर किसी को ऊपर बताए हुए लक्षणों में से कोई भी लक्षण आए तो उस पर ध्यान दें और डॉक्टर से मिलकर उन्हें बताएं। खासकर शुगर पेशंट हैं तो अपने फिजिशन से इस बारे में जरूर बात करेंं।
ऐक्यूपंक्चर से फायदा?
कुछ लोग ऐक्यूपंक्चर से न्यूरोपैथी के इलाज की बात करते हैं। दरअसल, यह एक चाइनीज़ पद्धति है। इसके इलाज में नीडल (सूई) का इस्तेमाल किया जाता है। इसे TCM (Traditional Chinese Medicine) कहते हैं। अभी इसे पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं माना गया है। इसलिए फायदे या नुकसान की बात कहना वैज्ञानिक तौर पर मुश्किल है। लेकिन किसी को ऐक्यूपंक्चर कराना हो तो अपने डॉक्टर या फिजियोथेरपिस्ट को जरूर बता दें।
लगातार काम से भी सुन्नपन?
यह सच है कि कई बार एक अंग से लगातार काम करने से उस अंग में कमजोरी या ग्रिप में कमी महसूस हो सकती है। ऐसे में ये लक्षण भले ही न्यूरोपैथी जैसे हों पर आराम करने से कुछ मिनटों से लेकर 1-2 घंटों में ही स्थिति सामान्य यानी पहले जैसी हो जाती है। ऐसा होना सामान्य है, लेकिन ऐसा न हो तो डॉक्टर से मिलना चाहिए। कुछ मामलों में यह काफी हद तक ठीक भी हो सकता है तो कुछ मामलों में हल्का सुधार ही हो पाता है।
कभी-कभी 100 फीसदी भी वापसी मुमकिन हो सकती है। वैसे ये सब न्यूरोपैथी की वजह पर ही निर्भर करता है कि गंभीर बीमारी की वजह से हुआ है या फिर कोई सामान्य बीमारी के कारण। फिर भी दवाओं का असर 8 से 12 हफ्तों में अक्सर दिखने लगता है। ज्यादा सुधार में 6 महीनों से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। हकीकत यह है कि नसोंं की परेशानी को दूर करने में वक्त लगता है।
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