नई दिल्ली
दुनिया की अग्रणी स्पेस कंपनियों में अपनी जगह बना चुकी इसरो (ISRO) ने एक और मील का पत्थर हासिल कर लिया है। भारत के सैटेलाइट पीएसएलवी ने शून्य कक्षीय मलबा मिशन पूरा कर लिया। यह मिशन अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इससे फायदा यह होगा कि अब इसरो नए मिशन के लिए जो भी रॉकेट लॉन्च करेगा, उसका मलबा अंतरिक्ष में नहीं बिखरेगा। इसरो ने इस मिशन को ऐसे समय में पूरा किया है जब दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष में मलबा एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
इसरो ने सोमवार को मामले में जानकारी दी कि उसके ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने शून्य कक्षीय मलबा मिशन पूरा कर लिया है। यह उपलब्धि 21 मार्च को हासिल किया गया जब पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-3 (पीओईएम-3) ने पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश किया और अपने मिशन को पूरा किया। अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने कहा, ‘‘पीएसएलवी -सी58/एक्सपोसैट मिशन ने व्यावहारिक रूप से कक्षा में शून्य मलबा छोड़ा है।’’
मिशन की महत्ता समझिए
इसरो के मुताबिक, किसी भी सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित करने के बाद पीएसएलवी तीन हिस्सों में बंट जाता है। इसे पीओएम-3 कहा जाता है। इसमें पीएसएलवी को पहले 650 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा से 350 किलोमीटर वाली कक्षा में लाया गया। इससे पीएसएलवी जल्दी ही अपनी कक्षा में प्रवेश कर गया। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कक्षा बदलने के दौरान किसी भी सैटेलाइट के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा कम हो जाएगा।
पीओईएम-3 में 9 तरह के प्रायोगित पैलोड लगाए गए हैं। यह एक तरह से वैज्ञानिक प्रयोग है। इन पेलोड को एक महीने के भीतर तैयार जरूर किया जाता है लेकिन, इसमें खर्चा बहुत रहता है। इसलिए इसरो ने गैर सरकारी संस्थानों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रयोग किए हैं। जिसके तहत इसमें 6 पैलोड एनजीई द्वारा IN-SPACe द्वारा दिए गए हैं।
चंद्रयान-3 की लैंडिग साइट शिव-शक्ति को IAU की मंजूरी
हाल ही में इसरो ने चंद्रयान-3 को लेकर फिर से सुर्खियां तब बटोरी। जब अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने 19 मार्च को चंद्रयान -3 की लैंडिंग साइट के लिए 'शिव शक्ति' नाम को मंजूरी दे दी। यह नाम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 अगस्त, 2023 को मिशन की सफलता की घोषणा के बाद दिया गया था।
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