इस्लामाबाद
पड़ोसी देश पाकिस्तान में किस तरह इंसाफ का गला घोंटा जाता है और न्यायिक प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, इसका खुलासा खुद वहां के जजों ने किया है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट के छह जजों ने चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया है कि खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के लोग दबाव डालकर और धमकी देकर गलत फैसले लिखने को मजबूर करते हैं। इन जजों ने सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल (SJC) से मामले में दखल देने की मांग की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंगलवार को, इस्लामाबाद हाई कोर्ट के कुल आठ में से छह जजों ने सर्वोच्च सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल के सदस्यों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें अपने रिश्तेदारों के अपहरण और उत्पीड़न के साथ-साथ उनके घरों के अंदर गुप्त निगरानी करने और उसके जरिए जजों पर दबाव बनाने के आरोपों का जिक्र है। जजों की इस चिट्ठी के बाद पाकिस्तान में हंगामा मच गया है। जजों के इन आरोपों की जांच की मांग होने लगी है।
हाई कोर्ट के जजों ने जिस सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल को चिट्ठी लिखी है, उसके सदस्यों में पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश क़ाज़ी फ़ैज़ ईसा, पाक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मंसूर अली शाह और जस्टिस मुनीब अख्तर और इस्लामाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आमिर फारूक और पेशावर उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस मोहम्मद इब्राहिम खान शामिल हैं। इन जजों को लिखी चिट्ठी में हाइ कोर्ट के जजों ने यह भी सवाल किया है कि क्या न्यायाधीशों को "डराने-धमकाने" और उन पर दबाव डालने की कोई सरकारी नीति मौजूद है।
छह जजों ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शौकत अजीज सिद्दीकी की उस मांग का भी समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने ISI के गुर्गों द्वारा हस्तक्षेप के आरोपों की जांच की मांग की थी। 25 मार्च को लिखी गई इस चिट्ठी पर जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी, तारिक महमूद जहांगीरी, बाबर सत्तार, सरदार इजाज इशाक खान, अरबाब मुहम्मद ताहिर और जस्टिस समन रफत इम्तियाज के दस्तखत हैं।
इस्लामाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल से इस मामले की "पारदर्शी जांच" करने और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। एक प्रेस विज्ञप्ति में, एसोसिएशन ने कहा कि एक आपातकालीन बैठक कर वकीलों के निकाय ने एक संस्था द्वारा दूसरी संस्था के मामलों में हस्तक्षेप की कड़ी निंदा की है। बार एसोसिएशन ने चिट्ठी लिखने वाले छह न्यायाधीशों की उनके "साहस और बहादुरी" के लिए सराहना भी की है। एसोसिएशन ने कहा है कि देश में ऐसी व्यवस्था हो ताकि न्यायपालिका बिना किसी डर या खतरे के कानून और संविधान के अनुसार स्वतंत्र निर्णय सुनिश्चित कर सके।
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