उज्जैन
25 नवंबर को वह दिन आने ही वाला है, जब रात 12 बजे भगवान श्री महाकालेश्वर तीनों लोकों की जिम्मेदारी भगवान विष्णु को सौंपने के लिए भव्य सवारी के रूप में द्वारकाधीश के समक्ष गोपाल मंदिर जायेंगे।
‘हर यानी भगवान शिव (उज्जैन में विराजित साक्षात महाकाल) प्रति वर्ष लाव-लश्कर के साथ ‘ हरि यानी भगवान श्री विष्णु (द्वारकाधीश ) के महल (बड़ा गोपाल मंदिर) जाते हैं और सृष्टि का भार सौंपकर निश्चिंत हो जाते हैं। सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी हर अर्थात भगवान शिव को देवशयनी ग्यारस पर मिलती है। श्री हरि भगवान विष्णु उन्हें सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी सौंपकर चार माह के लिए विश्राम पर चले जाते है। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु की पूजन से शुरू होने वाले कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि संपादित नहीं होते।
देव प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु विश्राम समाप्त करते हैं और इसके तीन दिन बाद चतुर्दशी पर भगवान शिव पुन: सृष्टि का भार सौंप कर इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं। बताया जाता है कि हरिहर मिलन के लिए भगवान श्री महाकाल की सवारी रात 11 बजे महाकाल मंदिर से निकलती है। रात 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंचती है। इस दौरान सवारी मार्ग पर भव्य आतिशबाजी और सजावट की जाती है। देर रात तक गोपाल मंदिर व पटनी बाजार क्षेत्र में जश्न का माहौल रहता है। यह एक ऐतिहासिक क्षण होता है जिसका साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में भक्तगण यहां पहुंचते हैं।
शैव-वैष्णव को एकजुट करने की है परंपरा
उज्जैन में इस परंपरा को लेकर महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा का कहना है कि तत्कालीन सिंधिया रियासत में शैव और वैष्णवों के बीच परस्पर मेल-मिलाप की नीति लागू की गई थी। तत्कालीन रियासतदारों की सोच थी कि यदि शैव और वैष्णव, धर्म के नाम पर कथित रूप से आपस में विवाद नहीं करते हैं और एक हो जाते हैं, तो हिंदू धर्म की एकता अधिक मजबूत होगी। यही कारण है कि तत्कालीन सिंधिया रियासत के जमाने से ‘हरि-हर मिलन की परंपरा शुरू की गई।
शिव धारण करेंगे तुलसी और गोपाल जी को चढ़ेगी आंकड़े की माला
कहा जाता है भगवान शिव के पूजन में तुलसी पत्र प्रतिबंधित है। लेकिन हरिहर मिलन के वक्त भगवान शिव तुलसी पत्र से बनी माला धारण करते हैं। दोनों भगवानों की पूजा पद्धति को बदला जाता है। हरिहर मिलन के वक्त महाकाल मंदिर के पुजारी द्वारकाधीश की पूजा भगवान महाकाल की पूजा पद्धति से करते हैं और द्वारकाधीश को आकड़े के फूल की माला पहनाई जाती है। शिव पूजन के मंत्रों का वाचन किया जाता है। इसके बाद जब भगवान महाकाल का पूजन किया जाता है तब गोपाल मंदिर के पुजारी बाबा महाकाल को तुलसी पत्रों की माला पहनाकर द्वारकाधीश की पूजन के वक्त पढ़े जाने वाले पवमान सूक्त का पाठ करते हैं।
कार्तिक माह में निकलेगी बाबा महाकाल की पांच सवारी
कार्तिक एवं अगहन माह में भगवान श्री महाकालेश्वर की सवारी निकाली जाती है। इस बार श्री महाकालेश्वर भगवान की कार्तिक एवं अगहन (मार्गशीर्ष) माह में पहली सवारी सोमवार 20 नवम्बर, द्वितीय सवारी 27 नवम्बर, तृतीय सवारी 4 दिसम्बर तथा शाही सवारी 11 दिसम्बर 2023 को निकाली जाएगी। इनके बीच हरिहर मिलन की सवारी रविवार 25 नवम्बर 2023 को निकाली जावेगी। इसी दिन रात में श्री हरिहर मिलन होगा।
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