काठमांडू
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल डिप्टी पीएम और विदेश मामलों के मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ को चीन भेज रहे हैं। श्रेष्ठ की ये चीन यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब विपक्षी दल चीनी कर्ज, खासतौर से बीआरआई प्रोजेक्ट को लेकर कई तरह के सवाल उठा रहे हैं। हाल ही में काठमांडू में चीनी राजदूत ने सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से मुलाकात की थी। इसके बाद विपक्षी नेताओं ने नेपाल में चीनी बेल्ट और रोड पहल को लागू करने की योजना में चीन को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए हैं। विपक्षी नेता और पूर्व वित्त मंत्री प्रकाश शरण महत ने कहा है कि नेपाल का चीन से महंगा ऋण लेना खतरनाक है। इससे नेपाल कर्ज के जाल में फंस जाएगा।
काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, नेपाल के डिप्टी पीएम श्रेष्ठ रविवार को चीन की नौ दिवसीय यात्रा पर रवाना होंगे। विपक्षी दलों का कहना है कि उनकी इस चीन यात्रा के एजेंडे में बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर एक समझौता होना है। हालांकि सरकार के एक मंत्री ने कहा है कि यह एक सद्भावना यात्रा है जहां दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति और स्थिति पर चर्चा होगी। वहीं इस संबंध में एक्सपर्ट की राय अलग है।
चीन चाहता है बीआरआई प्रोजेक्ट में तेजी
चीनी मामलों के जानकार अधिकारियों का कहना है कि 2017 में नेपाल द्वारा इस पर हस्ताक्षर करने के बाद से बीजिंग बेल्ट एंड रोड पहल को लागू करने की धीमी प्रगति से नाखुश है। बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करने के लिए बीजिंग के दबाव के बावजूद दहल सरकार को इसमें और अधिक समय लग सकता है। अपनी यात्रा से पहले श्रेष्ठ शनिवार को विभिन्न संबंधित मंत्रालयों के साथ बैठक कर उन परियोजनाओं की स्थिति पर चर्चा करेंगे जिन्हें वह अपने चीनी समकक्ष के साथ उठाएंगे। इसके बाद रविवार शाम को श्रेष्ठ और उनकी टीम बीजिंग के लिए रवाना होगी।
चीन ने कई परियोजनाओं के लिए नेपाल को कर्ज दिया हुआ है। इसमें नेपाल फंसता दिख रहा है। हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने कहा था कि पोखरा हवाई अड्डे के लिए चीन से लिए गए ऋण को अनुदान में बदलने के लिए वह बीजिंग के साथ राजनयिक प्रयास कर रहे हैं। एयरपोर्ट उम्मीद के मुताबिक कमाई करने में विफल रहा है। इससे कर्ज चुकाने में मुश्किल आ रही है। चीन अगर पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए दिए लोन को ग्रांट में बदलता है तो नेपाल सरकार को ब्याज नहीं चुकाना होगा। नेपाल के पोखरा हवाई अड्डे का निर्माण मुख्य रूप से चीनियों कंपनियों द्वारा वित्त पोषित और क्रियान्वित किया गया है।
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