चेन्नई
तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने रविवार को कांग्रेस और द्रमुक पर साठगांठ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने का आरोप लगाया। श्रीलंकाई नौसेना द्वारा तमिलनाडु के मछुआरों की गिरफ्तारी पर इंडिया गठबंधन के विरोध पर अन्नामलाई ने 'एक्स' पर कहा कि उन्हें कच्चातिवु मुद्दे पर उनके आरटीआई आवेदन के अनुसार दस्तावेज प्राप्त हुए थे और उन्होंने पाया कि कांग्रेस पार्टी ने कितनी बेरहमी से श्रीलंका के हाथों भारत के हिस्से को छिन जाने दिया था।
भाजपा नेता ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 10 मई, 1961 को इस मुद्दे को अप्रासंगिक बताते हुए खारिज कर दिया था और कहा था कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। अन्नामलाई ने कहा कि उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, नेहरू ने तब लिखा था, मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल तक लंबित रहे और इसे संसद में दोबारा उठाया जाए।
भाजपा नेता ने कहा कि भारत के एक अत्यधिक सम्मानित कानूनविद और तत्कालीन अटॉर्नी जनरल सी.एस. सीतलवाड ने 1960 में कहा था कि भारत का इस द्वीप पर अधिक मजबूत दावा है और दावा किया था कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीप के जमींदारी अधिकार रामनाद (रामनाथपुरम) के राजा को दिए थे।
अन्नामलाई ने यह भी कहा कि विदेश मंत्रालय (कानून और संधि) के तत्कालीन संयुक्त सचिव कृष्ण राव ने भी कहा था कि भारत के पास एक अच्छा कानूनी मामला है और उस पर काफी मजबूती से बहस की जा सकती है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन विपक्ष ने श्रीलंका (तत्कालीन सीलोन) की संसद में वहां के प्रधानमंत्री डी.एस. सेनानायके और स्थानीय पदाधिकारियों के इन बयानों का विरोध नहीं करने के लिए भारत सरकार को फटकार लगाई थी जिनमें उन्होंने कच्चातिवु को श्रीलंका का हिस्सा बताया था।
भाजपा नेता ने कहा कि 1973 में कोलंबो में विदेश सचिव स्तर की वार्ता के बाद जून 1974 में भारतीय विदेश सचिव केवल सिंह ने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को भारत के दावों को छोड़ने के निर्णय से अवगत कराया गया था। अन्नामलाई ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार, करुणानिधि ने भी सहमति दी थी। भाजपा नेता ने कहा कि समझौते में एक खंड था कि तमिलनाडु के भारतीय मछुआरे कच्चातिवु का उपयोग कर सकते हैं और वे वहां अपना जाल सुखा सकते हैं। अन्नामलाई के अनुसार, यह मछुआरा समुदाय के संभावित विद्रोह को रोकने के लिए था, लेकिन उन्होंने कहा कि एक साल बाद इस अनुच्छेद को रद्द कर दिया गया था। अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और द्रमुक ने मिलीभगत करके जमीन का एक टुकड़ा श्रीलंका को दे दिया और उसे खोने से रोकने के लिए कोई उपाय भी नहीं किया।
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