इंदौर
देश में पत्रकारिता की स्थिति जितनी आज खराब है, उतनी आपातकाल के दौर में भी नहीं थी। पर्यावरण के नजरिए से ही नहीं वैचारिक स्थिति में भी देश की राजधानी प्रदूषण का शिकार है। सरकारी एजेंसियों को असहमति के स्वर दबाने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। पत्रकार सत्ता संस्थानों से सवाल पूछना ही भूल गए हैं। देश में 60 करोड़ से अधिक सोशल मीडिया के उपभोक्ता हैं, लेकिन उनके पास किसी पोस्ट की सच्चाई जानने या परखने का कोई जरिया नहीं है। जिसके कारण ’व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ देश के जनमानस को प्रभावित कर रही है।
यह बातें वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता तथा शिक्षक परांजय गुहा ठाकुरता ने कही। वे स्टेट प्रेस क्लब, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), महिला फेडरेशन तथा मेहनतकश द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।
4 नवंबर 2023 को "लोकतंत्र में असहमति के स्वर" विषय पर संवाद कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवैधानिक अधिकार है पत्रकार का काम ही सवाल उठना है। मुख्य धारा का मीडिया व्यवस्था के जिम्मेदार शासको की अपेक्षा विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने का काम कर रहा है। इसके पीछे सरकार की विज्ञापन देने की नीति प्रमुख है। कांग्रेस के शासनकाल में भी पत्रकार दमन का शिकार होते थे, लेकिन उसके पीछे बदले की भावना नहीं होती थी।
ठाकुरता ने विस्तृत रूप से बताया कि किस तरह दिल्ली पुलिस के सैकड़ों कर्मचारियों ने न्यूज़ क्लिक वेबसाइट से जुड़े पत्रकारों को रात के ढाई-तीन बजे गिरफ्तार किया और उनके फोन, लैपटॉप इत्यादि उपकरण जप्त किए गए। उनसे वे सवाल किए गए जिनसे पुलिस को कोई मतलब होना ही नहीं चाहिए। ज़्यादातर सवाल किसान आंदोलन के कवरेज, कोविड रोकथाम को लेकर किए गए सरकारी प्रयासों की कमियों पर लिखे लेखों, पूर्वी दिल्ली में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे इत्यादि से संबंधित मीडिया रिपोर्ट पर थे। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा मीडिया की आवाज को दबाने का यह पहला प्रयास नहीं है बीबीसी, न्यूज़ लॉन्ड्री, वायर सहित कई संस्थान इसका शिकार बन चुके हैं।
उन्होंने कहा कि क्या अब पुलिस यह तय करेगी कि पत्रकार किस प्रकार का कवरेज करें?
असहमति के स्वर रोकने के लिए कानून और सरकारी एजेंसियों का इतना बुरी तरह से दुरुपयोग इमरजेंसी के समय भी नहीं हुआ था। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दैनिक भास्कर समाचार पत्र में कोविड काल में सरकारी विफलताओं के समाचार और फोटो प्रकाशित हुए तो तत्काल ही उस समाचार-पत्र पर आयकर विभाग का छापा डलवाया गया। ठाकुरता ने कहा कि सच्चे लोकतंत्र की रक्षा के लिए पत्रकारिता का स्वस्थ और स्वतंत्र रहना बेहद ज़रूरी है। लोकतंत्र और मीडिया दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं।
परांजय गुहा ठाकुरता ने कहा कि जब उन्होंने यूपीए के शासन के दौरान अंबानी को दिये जा रहे समर्थन और 2जी घोटाले पर लिखा तो भाजपा के नेता बड़े खुश हुए, लेकिन जब एनडीए के शासनकाल में अडानी उद्योग समूह को दी जा रही बेजा मदद पर लिखा तो उन्हें कांग्रेसी करार दिया जाने लगा। उल्लेखनीय है कि ठाकुरता देश के एकमात्र पत्रकार हैं जिनका उल्लेख हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में है।
ठाकुरता ने देश के मीडिया पर बढ़ते हुए सरकारी धन के प्रभाव को चिंताजनक बताते हुए सोशल मीडिया पर नफरत और झूठे समाचार फैलाने पर चिंता जतायी।
श्रोताओं के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता में पेड न्यूज की स्थिति बहुत विकट हो चुकी है। इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली में अडानी समूह को सरकारी मदद पर लिखे गए आलेख, के अलावा भी वे मानहानि के छः मुकदमों का सामना रहे हैं। उन्होंने आशंका जतायी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चुनाव में उन दलों की मदद कर सकती है जिनके पास अधिक संसाधन हैं।
अतिथि परिचय एवं विषय प्रवर्तन करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि मुखर आजाद मीडिया तथा लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए हर तरह की कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। सच्चा लोकतंत्र बिना असहमति के संभव ही नहीं है। इस हेतु ठाकुरता प्रेरित करते हैं।
संवाद कार्यक्रम के प्रारंभ में आयोजन की सहभागी संगठन इप्टा की ओर से प्रमोद बागड़ी, भारतीय महिला फेडरेशन की ओर से सुसारिका श्रीवास्तव, प्रलेसं की ओर से चुन्नीलाल वाधवानी एवं मेहनतकश की ओर से विजय दलाल ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर मंचासीन वरिष्ठ अर्थशास्त्री श्रीमती जया मेहता का स्वागत स्टेट प्रेस क्लब, मध्य प्रदेश के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल ने किया। श्रीमती मीना राणा शाह, रचना जौहरी एवं सोनाली यादव ने स्टेट प्रेस क्लब की और से तथा मेहनतकश संस्था की ओर से विजय दलाल ने अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट किये। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी आलोक वाजपेयी ने किया। आभार प्रवीण कुमार खारीवाल ने माना।
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