सिवोक-रेंगपो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत 553 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास का शिलान्यास करेंगे. इसके तहत एक एक रेलवे स्टेशन ऐसा भी है जो सुरक्षा और रणनीतिक रूप से बहुत अहमियत रखता है और यह है सिक्किम का रेंगपो रेलवे स्टेशन, आजादी के बाद पहली बार रेल पहुंचेगी.
45 किलोमीटर वाली रेल लाइन परियोजना सिवोक-रेंगपो को 2022 में मंजूरी मिली थी. इसके तैयार होने से गंगटोक से नाथू ला सीमा तक जाने वाली सिक्किम-चीन सीमा तक एक मजबूत रेल नेटवर्क बन जाएगा.
रणनीतिक रूप से है अहम
यह परियोजना सिक्किम चीन सीमा पर भारत की रक्षा तैयारियों के लिहाज से भी अहम है, वो भी ऐसे समय में जब सीमाओं पर चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध चल रहे हैं. अरुणाचल प्रदेश में 200 किलोमीटर लंबी भालुकपोंग-तेंगा-तवांग रेलवे लाइन के बाद यह रेलवे की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है, जो चीन सीमा क्षेत्र तक कनेक्टिविटी बढ़ाएगी.
रेंगपो रेलवे स्टेशन का काम तीन चरणों में पूरा किया जा रहा है, जिसके तहत पहले फेज में सिवोक से रेंगपो तक, दूसरे फेज में रेंगपो से गंगटोक तक और तीसरे फेज में गंगटोक से नाथुला तक स्टेशन तैयार किया जाएगा. पहले चरण का कार्य पूरा होने से न केवल चीन की सीमा से लगे सिक्किम में कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि देश के लिए राष्ट्रीय रक्षा एजेंडे को भी बढ़ावा मिलेगा.
सिवोक-रेंगपो रेल लिंक भारतीय सेना और रक्षा बलों के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखता है, यहां रेलवे कनेक्टिविटी बढ़ाने से सैन्य रसद पर सीधा असर पड़ता है. इस लाइन के तैयार होने से बॉर्डर तक भारी सैन्य उपकरणों और हथियारों को पहुंचाने में आसानी हो जाएगी. इससे सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा और आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्रवाई करने में मदद मिलेगी.
सिवोक-रेंगपो रेल मार्ग
प्रस्तावित 44.98 किलोमीटर लंबा रेलवे लिंक जो पश्चिम बंगाल के सिवोक से शुरू होता है और सिक्किम के रेंगपो पर समाप्त होता है. इस दौरान पांच स्टेशन होंगे जिनमें सिवोक, रियांग, तीस्ता बाजार, मेली और रेंगपो शामिल हैं. परियोजना पर काम कर रहे इरकॉन के परियोजना निदेशक मोहिंदर सिंह ने कहा,'सिवोक-रेंगपो प्रस्तावित लाइन में 14 सुरंगें और 13 ओवर ब्रिज हैं… 35 किलोमीटर से अधिक सुरंग बनाने का काम किया जा चुका है. इस साल मार्च में ट्रैक बिछाने का काम शुरू हो जाएगा. हमारा लक्ष्य दिसंबर 2024 तक पुलों को पूरा करने का है.'
तीस्ता बाज़ार: सर्वाधिक ऊंचाई वाला भूमिगत ब्रॉड गेज प्लेटफार्म
तीस्ता बाज़ार रेलवे स्टेशन को संभावित रूप से सबसे अधिक ऊंचाई और अर्ध-पहाड़ी इलाके में तैयार होने वाला पहला भूमिगत ब्रॉड गेज स्टेशन होगा. 620 मीटर लंबे प्लेटफार्म पर एक पूरी कोच वाली ट्रेन खड़ी हो सकती है. स्टेशन में आपात स्थिति और निकासी के लिए छह पहुंच सुरंगें होंगी. रेल मार्ग को जोड़ने के लिए सुरंग में लाइन बिछाने का काम अभी भी किया जा रहा है, क्योंकि यह स्टेशन दार्जिलिंग को गंगटोक से जोड़ेगा ताकि यात्री दोनों गंतव्यों तक आसानी से जा सकें.
अलीपुरद्वार डिवीजन के डीआरएम श्री अमरजीत गौतम ने कहा, 'परियोजना का पहला चरण 2025 तक पूरा हो जाएगा. दूसरे और तीसरे चरण का अभी सर्वेक्षण चल रहा है और स्टेशन स्थानों के लिए डीपीआर रिपोर्ट तैयार की जा रही है. यह एक ऐसी परियोजना है जिसमें रक्षा मंत्रालय की भागीदारी होगी क्योंकि यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. ये चरण 2029 तक पूरे हो सकते हैं, सिक्किम के दुर्गम और चुनौतीपूर्ण इलाके में भी, रेलवे रेल मार्ग का विस्तार करने में सक्षम होगा क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं है जो रेलवे नहीं कर सकता है.'
इस परियोजना के दूसरे और तीसरे चरण के लिए खुली बोली के माध्यम से निविदाएं जारी की जाएंगी. यह परियोजना, जो 2008 में स्वीकृत होने पर लगभग 4085.58 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर शुरू हुई थी, अब इसका संशोधित अनुमान लगभग 12000 करोड़ हैं. इसकी शुरुआत पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) विभाग द्वारा की गई थी.
क्या हैं चुनौतियां
सिक्किम में रेल नेटवर्क बनाने में कई तरह की चुनौतियां भी हैं. उत्तरी सिक्किम में दक्षिण लोह्नक झील में अचानक हुए ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) से सैलाब सा आ गया था और तीस्ता नदी में जल स्तर अचानक बढ़ गया था. इसके परिणामस्वरूप कई हिस्सों में एकमात्र कनेक्टिविटी (एनएच -10) बह गई थी. महीनों तक भारी और हल्के दोनों प्रकार के वाहनों की यातायात आवाजाही बाधित रही, जिसने अंततः परियोजना की प्रगति पर असर डाला.
पश्चिम बंगाल में 122.47 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण में वन और वन्यजीव मंजूरी में 10 साल की देरी के साथ-साथ पुल स्थानों पर वन अधिकारियों द्वारा गतिविधियों के अस्थायी निलंबन के साथ परियोजना में देरी हुई. हिमालय राज्य होने के कारण मानसून के मौसम के दौरान अक्सर भूस्खलन का खतरा रहता है. ये प्राकृतिक घटनाएँ न केवल प्रगति में बाधा डालती हैं बल्कि हमारे लिए एक तार्किक चुनौती भी पेश करती हैं.
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