भोपाल
डेढ़ फीसदी महिला मतदान बढ़ने से भाजपा इसे लाडली बहना और कांग्रेस नारी सम्मान से जोड़ कर जीत के दावे कर रही है। लेकिन 2018 के चुनाव के मुकाबले इस अंतर पर हवाई किले तानने में पार्टियां ये भूल बैठी हैं कि इन पांच सालों में महिला वोटर्स 2.79 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। इसलिए कितनी महिलाओं ने किस तर्क पर किसे वोट दिया इसके मनचाहे पैरामीटर तय करना मुंगेरीलाल के हसीन सपने साबित हो सकता है।
भाजपा और कांग्रेस के अपने- अपने वोट बैंक है। जिनमें वैचारिक प्रतिबद्धता के हार्डकोर वर्कर और फालोअर्स किसी सूरत में अपना वोट नहीं बदलते। लेकिन इन्हीं के बीच एंटी इनकंबेंसी और असंतुष्टों की एक ऐसी जमात है जो अपने हितों और समीकरणों के मुकाबले न केवल पाला बदल चुकी हैं, बल्कि नवमतदाता, युवा, निरपेक्ष और तटस्थ यानी फ्लोटर्स लोगों से मिल कर एक बड़ा गेमचेंजर समूह में तब्दील हो चुके हैं। मप्र में भी प्रतिबद्ध वोटर्स नतीजा तय करेंगे या फ्लोटर्स का परचम लहराएगा ये तीन दिसंबर को तय होगा लेकिन ये साफ है कि किसी पार्टी की राह आसान या सुनिश्चित नहीं है।
प्रदेश की आधी से ज्यादा महिला वोटर्स लाडली बहना के दायरे से बाहर
2023 के विधानसभा चुनाव से पहले एक करोड़ 31 लाख महिला वोटर्स लाडली बहना के दायरे में लाई जा चुकी हंै। सरकार के सूत्र कहते हैं इन सभी को लाडली बहना योजना का लाभ मिल रहा है। जबकि प्रदेश में 1 करोड़ 42 लाख ऐसी भी महिला मतदाता है जो लाडली बहना योजना के दायरे से बाहर है। इस तर्क के आधार पर भी आधे से ज्यादा महिला वोटर्स लाडली के आभामंडल से बाहर हैं। लाड़लियों में ही अधिकांश वे महिलाएं हैं जिन्हें स्वसहायता समूह, कुटी, शौचायल आदि योजनाओं का भी लाभ मिला है। इन्हीं में 450 रुपए में मिलने वाले सस्ते सिलेंडर की हितग्राही महिलाएं भी शामिल हैं। अब इन महिला वोटर्स में भी सिस्टम की खामी से किसी भी प्रकार के लाभ में कमी आने से रुष्ट होने वाली वोटर्स भी शामिल हैं। ऐसे में मतगणना के अंतिम नतीजों का एनालिसिस ही तय करेगा कि वास्तव में लाडली का अंडर करंट था या नहीं।
वोटिंग प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी हैं महिला मतदाता
इसके सबसे सशक्त उदाहरण राजस्थान और गोवा जैसे राज्य हैं। मप्र के साथ राजस्थान का चुनाव भी हो रहा है वहां क्या फार्मूला लागू होगा यह देखना भी मप्र के परिणामों जितना ही दिलचस्प होगा। इस बार विधानसभा चुनाव में 77.15 फीसदी मतदान हुआ है जो वर्ष 2018 की तुलना में डेढ़ फीसदी ज्यादा है। प्रदेश में अगर महिला मतदाताओं की बात करें तो प्रदेश में कुल मतदाता 2 करोड़ 73 लाख है। जबकि 2018 के चुनाव में इनकी संख्या केवल 2 करोड़ 40 लाख थी।
चुनाव में जब-जब मतदान बढ़ा है फ्लोटर्स ने तय किए हैं नतीजे
इतिहास गवाह है जब-जब मतदान बढ़ता है तब सत्ताभिषेक युवा और फ्लोटिंग वोटर्स करते हैं। प्रदेश में 3 करोड़ 8 लाख ऐसे मतदाता हैं जिनकी उम्र 18 साल से लेकर 39 साल के बीच है। इनमें दो करोड़ ऐसे बेरोजगार हैं जिनमें से अधिकांश ने बीजेपी के तीन कार्यकाल देखे हैं। सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों में प्रदेश के 49 लाख 14 हजार 390 ऐसे लोग भी हंै जिन्हें 6 माह से इंदिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिली। चुनाव से कुछ महीने पहले ही 12 लाख युवा पटवारी परीक्षा में शामिल हुए थे। रिजल्ट में फर्जीवाड़ा की खबरों से प्रतियोगी और उनके परिवारों की मनस्थिति सत्ता के पक्ष में रहना कठिन लगता है।
पिछली बार महिला वोट बढ़ने से कांग्रेस को मिला था लाभ
2023 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने 76.03 फीसदी मतदान किया है। जो वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 1.95 फीसदी ज्यादा है। प्रदेश की 70 से ज्यादा सीटों पर महिलाओं ने 80 फीसदी से ज्यादा मतदान किया है जो कुल सीटों के एक तिहाई से भी कम है। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भी प्रदेश की 41 सीटे ऐसी थी जहां 80 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने मतदान में हिस्सा लिया था। इनमें से 27 सीटे कांग्रेस की झोली में गयी थी। जबकि 12 सीटों पर बीजेपी को संतोष करना पड़ा। वहीं दो सीटे निर्दलीयों के हिस्से में गयी थी। इसलिए केवल वोट बढ़ना जीत की गारंटी नहीं हो सकता। संभवत: इसी तर्क के चलते कांग्रेस इन आंकड़ों का हवाला देते हुए महिलाओं का समर्थन अपने खाते में जोड़ रही है।
रूल आफ सेचुरेशन लागू हो गया तो..?
बीजेपी वर्ष 2008 से महिला मतदाताओं पर सबसे ज्यादा फोकस करती आ रही है। विगत तीन चुनावों में बीजेपी को महिलाओं का भारी समर्थन भी मिला है। इसमें और वृद्धि होने की संभवना सेचुरेशन थ्योरी के मुताबिक क्षीण हो चुकी है। अकादमिक लिहाज से देखा जाए तो एक समय के बाद सीमांत तुष्टिकरण ह्रासमान नियम लागू होने लगता है। यही नियम महिला मतदाताओं पर भी अब लागू हो सकता है।
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