भोपाल
प्रदेश में जमीन की खरीद फरोख्त के साथ अन्य कार्यों के लिए एग्रीमेंट में लगाए जाने वाले ज्यूडिशियल टिकट (स्पेशल एडहेसिव टिकट) के उपयोग और खरीद-फरोख्त में बैंकर्स और वेंडर्स की मिलीभगत से सरकार को लाखों रुपए का चूना हर माह लगाया जा रहा है। आला अफसरों की जानकारी में यह मामला सामने आने के बाद भी एफआईआर की फौरी कार्यवाही के अलावा इस मामले में चुप्पी साध ली गई है। इसका विरोध इसलिए भी नहीं हो रहा है क्योंकि बैंकर्स और वेंडर्स दोनों को ही फायदा हो रहा है और शासन को होने वाले नुकसान की चिंता अफसरों को नहीं है।
राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के लगभग सभी जिला मुख्यालयों में स्पेशल एडिसिव टिकट की खरीदी के मामले में शासन को नुकसान पहुंचाने का खेल चल रहा है। राजधानी के वेंडर्स बताते हैं कि जो स्पेशल एडहेसिव टिकट (ज्यूडिशियल टिकट) एग्रीमेंट में अनुबंध करने वाले पक्षकारों द्वारा लगाया जाता है, उसे बैंक तक पहुंचने के बाद कई बैंकर्स और वेंडर्स की मिलीभगत के बाद वापस वेंडर्स को लौटा दिया जाता है। इसके लिए वेंडर्स ने जो तरीका अपना रखा है उसके अनुसार इस काम में लिप्त वेंडर्स द्वारा एग्रीमेंट में जो टिकट लगाए जाते हैं, उसके ऊपर नोटरी वकील की सील नहीं लगाई जाती है। अगर लगाई भी तो ऐसे लगाते हैं ताकि यह समझ में न आए कि टिकट पर सील लग चुकी है। इसके बाद जब टिकट बैंकों में जाते हैं तो एग्रीमेंट के बाद कई बैंकों के अधिकारियों कर्मचारियों की मिलीभगत से टिकट वापस वेंडर्स के पास आ जाते हैं और वेंडर्स उस टिकट को फिर बेचकर मुनाफा कमाते हैं। इन टिकट्स का इस्तेमाल आरटीओ और अन्य विभागों व संस्थाओं में भी किया जाता है।
500 का टिकट लिया तो 3 सौ बैंकर्स को दिए
इस मामले में बाकायदा लेन देन साफ होता है। अगर पांच सौ की स्पेशल एडिसिव टिकट है तो उसमें से तीन सौ रुपए एग्रीमेंट से निकालकर देने वाले बैंक कर्मचारी अधिकारी को दिए जाते हैं और ऐसे में वेंडर को भी बेचते समय दो सौ रुपए की बचत हो जाती है। बताया जाता है कि पुरानी विधानसभा के सामने संचालित दुकानों में अधिकांश में यह कारोबार चल रहा है।
एक बार ऋकफ भी हुई
इस मामले में सूत्रों का कहना है कि कुछ महीनों पहले एसबीआई के एक मैनेजर ने ऐसा मामला पकड़ा और इसकी शिकायत राजधानी के एक थाने में भी की। तब कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया लेकिन बाद में मामला रफा दफा हो गया। इसके बाद इस मामले में जांच पड़ताल नहीं हुई।
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