December 3, 2024

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थैलेसीमिया: उसका मतलब और उससे जुड़ी बुनियादी जानकारी

थैलेसीमिया असामान्य हीमोग्लोबिन उत्पादन करने वाला एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो लंबे समय से भारत में एक अहम स्वास्थ्य चिंता का विषय रहा है. हालांकि, चिकित्सा विज्ञान में हालिया प्रगति ने इस स्थिति से जूझ रहे रोगियों के लिए आशा के एक नए युग की शुरुआत की है. आज हम भारत में थैलेसीमिया के रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों का पता लगाएंगे और उन अत्याधुनिक उपचारों पर प्रकाश डालेंगे जो अब उनके जीवन को बदलने के लिए मौजूद हैं.

थैलेसीमिया से जुड़ी चुनौतियां
 
फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम के बीएमटी स्पेशियलिस्ट डॉ. राहुल भार्गव (Dr. Rahul Bhargava) ने बताया कि थैलेसीमिया एक इनहैरिटेड ब्लड डिसऑर्डर है जो शरीर में हीमोग्लोबिन के प्रोडक्टशन की क्षमता को कम कर देता है. प्रोटीन के जरिए रेड ब्लड सेल्स में ऑक्सीजन कैरी होता है. जो लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं उनको रोजाना की जिंदगी में एनीमिया, थकान और दूसरी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

 
भारत में, थैलेसीमिया रोगियों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक एडवांस्ड ट्रीटमेंट तक सीमित पहुंच है. इस परेशानी के ज्यादा प्रसार के कारण, विशेष रूप से हाई कॉनसैंग्यूनिटी रेटर वाले क्षेत्रों में, स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों पर बोझ ज्यादा ह. कई रोगी जरूरी ब्लड ट्रांसफ्यूजन और स्पेशियलाइज्ड ट्रीटमेंट सहित पर्याप्त चिकित्सा देखभाल तक पहुंचने के लिए संघर्ष करते हैं.

इसके अलावा पैसे की कमी के कारण कई लोग और उनके परिवार वाले इलाज को लेकर परेशानी महसूस करते है. रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन, आयरन चेलेशन थेरेपी और कई दूसरे सपोर्टिव तरीके को लेकर आने वाला खर्च काफी ज्यादा हो सकता है. 

थैलेसीमिया से जुड़े नए ट्रीटमेंट्स

डॉ. राहुल भार्गव  ने बताया कि चुनौतियों के बावजूद थैलेसीमिया को लेकर उपाय जारी है जिसमें कई नए तरीके के ट्रीटमेंट किसी ब्रेकथ्रू से कम नहीं है. इसमें जीन थेरेपी ओक क्रांतिकारी अप्रोच है जिससे जरिए इस बीमारी के जड़ तक पहुंचा जा सकता है जो जेनेटिक म्यूटेशन को ठीक करने का काम करता है, इस तरीके को अपनाकर कई अच्छे रिजल्ट्स देखने को मिले हैं. क्लीनिकल ट्रायल और शुरुआती इलाज के जरिए जिंदगीभर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत को कम किया जा सकता है. 
 
इसके अलावा स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन टेकनिक में विकास के कारण पोटेंशियल डोनर्स की संख्या बढ़ी और सक्सेस रेट भी बेहतर हुआ है. इससे ज्यादा से ज्यादा थैलेसीमिया के मरीजों को फायदा हुआ. पहले इस तरह के इलाज दुर्लभ और खतरनाक माने जाते थे. साथ ही जीन थेरेपी के जरिए भी अच्छे रिजल्ट मिल सकते हैं. भले ही चुनौतियां आगे भी रहेंगी, लेकिन एडवास्ंड ट्रीटमेंट से उम्मीदें जरूर बढ़ गई हैं.